Wednesday, 06 April 2016 18:55

Imbalanced Thyroid Gland (थायरॉइड)

थायरॉइड एक बहुत छोटी स्राव ग्रंथि है जो ग्रीवा में होती है। थायरॉइड ग्रंथि से थायघक्सिन नामक हार्मोन निकलता है।यह हार्मोन शरीर के रासायनिक एवं मेटाबॉलिक कृया की गति को नियंत्रित करता है । हार्मोनों को एक रासायनिक संदेशवाहक के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है।जो रक्त से ऊतकों व अंगों तक पहुंचता है और शरीर के क्रियाकलाप पर प्रभाव डालते हैं।इसी तरह से थायरॉइड हार्मोन कई शारीरिक ।क्मीओं को प्रभावित करता है जैसे दिल की धड़कन की दर. श्वसनतंत्र की दर. कैलोरी खर्च होने. वृद्धि. फर्टिलिटी व पाचन आदि । जब इस ग्रंथि में कोई गड़बड़ी होती है तो इसमें से बहुत अधिक मात्रा में या कुछ कम मात्रा में हार्मोन निकलने लगता है. जिसकी वजह से थायरॉइड की समस्या इच्छ होती है।

रोग से जुड़े तथ्य

  • विश्व की 2 से 5 प्रतिशत महिलाएं थायरॉइड की बीमारी से ग्रस्त हैं ।
  • केवल भारत में ही 2 करोड़ थायरॉइडिज्य के मरीज हैं ।
  • थायरॉइड के हर 10 मरीजों में से 8 महिलाएं ही होती है।
  • करीब 4 करोड़ भारतीय थायरॉइड से ग्रस्त हैं।मधुमेह के बाद इसकी सबसे बड़ी संख्या है।
  • हर साल 3.5 लाख नए मरीज सामने आते हें।थायरॉइड सम्बन्धी गड़बड़ियां भी उतनी ही व्यापक हैं. जितना मधुमेह लेकिन इनका पता नहीं लगता ।

जांच

खून की जांच तीन तरह से की जाती है। T3, T4 और TSH (टीएसएच) हार्मोन्स के स्तर का पता लगाया जाता है।  पहली ही स्टेज का इलाज करा लिया जाए तो रोग जल्दी ठीक हो जाता है।

हाइपोथारॉइडिज्म

इसके शुरूआती लक्षण इतने कम होते हैं कि मरीज़ को पता नहीं लगता कि कुछ गड़बड़ है। जब तक इन लक्षणों का पता चलता है वे अधिक गंभीर हो जाते हैं। थायरॉइड हार्मोन्स जब शरीर में कम काम करें तो उस स्थिति में हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या उत्पन्न होती है।

  • रोगी का वजन बढ़ने लगता है और किसी भी प्रकार के इलाज से नियंत्रण में नहीं आता। हाइपोथायरॉइड की शिकायत होने पर मरीज की कार्यक्षमता कम हो जाती है। मेटाबालिक रेट कम हो जाता है।
  • रोगी को डिप्रेशन महसूस होता है। वह बातबात में भाबुक हो जाते हैं. कमजोरी. काम में अरूचि. थकान महसूस होने लगती है।
  • जोड़ों में पानी आ जाता है जिससे दर्द होता है और चलने में भी परेशानी होती है।
  • मांसपेशियों में हल्का सा पानी भर जाता है जिसे मालेनजिया कहते हैं।
  • चलर्तेफिरते हल्का दर्द होता है।
  • बालों का झड़ना और पतला होना, चेहरा सूजा हुआ लगना, रूखी आवाज़ धीर्रे धीरे और वक्त लगाकर बात करना।
  • कब्ज की शिकायत. नींद अधिक आना लो ब्लड प्रेशर होना भी इसके कारण है।
  • हृदय की झिल्ली में पानी जमा होने लगता है जिससे हृदय की क्रिया पर भी फर्क पड़ता है। इसे पैरीकार्डियल इन्फयुजन कहा जाता है।
  • प्रजनन क्षमता पर फर्क पडता है। मासिक धर्म के दौरान अधिक खून आता है। मासिक चक्र नियमित नहीं होता है।
  • गांइटर थायरॉइड से जुड़ी बीमारी है जो दोनों तरह के थायरॉइड के मामलों में देखने को मिलती है। आयोडीन रहित पानी व नमक और गॉइटोरेंस युक्त आहार लेना गांइटर को बढ़ावा देना है। इसी तरह कुछ विशेष दवाएं भी होती है। जो गॉइटोरेंस उत्पन्न करती हैं। गोभी परिवार की सब्जियों को गॉइटोनेस कहा जाता है ।
  • किशोरों में मेटाबॉलिज्म दर अधिक बढ़ जाने से थायरॉइड ग्रंथि के हार्मोन्स में भी परिवर्तन आने लगता है और उन्हें भी थायरॉइड की शिकायत हो सकती है।
  • जरूरी नहीं कि महिला थायरॉइड की मरीज हो तो उसके बच्चे को भी थायरॉइड हो. लेकिन किसी गर्भवती महिला को प्रसव के समय बच्चे पर फर्क दिखता है । प्रसव के दौरान शिशु को ऑक्सीजन मिलने में दिक्कत होती है ।

हाइपरथायरॉइडिज्म

जब थायरॉइड हार्मोन्स ज्यादा सक्रिय हों तो उसे हाइपर थायराइडिज्म कहा जाता है । हाइपरथायरॉइडिज्म के लक्षण हाइपोथायराडिज्म से एकदम विपरीत होते हैं। महिला मरीज के शरीर में टीएचए थायरॉइड स्टिथुलेटिंग हार्मोन ज्यादा बनने लगता है।

अधिक भूख और कम नींद

  • मेटाबालिक रेट बढ़ जाता है। रोगी को पसीना अधिक आता है।
  • धड़कन तेज हो जाती है।ऐसे लक्षण सामने आते हैं जैसे मरीज डरा हुआ आंखें फर्टीफटी प्रतीत होती है।
  • भूख अच्छी लगती है. महिला खूब खाती है. लेकिन मोटापे की शिकार नहीं होती।
  • इस तरह के रोगी को नींद कम आती है।
  • गरमी ज्यादा लगना।
  • थोर्ड़ेथोड़े दिनों के अंतराल में दस्त भी आते हैं।
  • प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है ।
  • अनियमित माहवारी और ज्यादा खून आने की शिकायत होती है ।
  • टायरॉइडिज्म से ग्रस्त लड़कियों में अनेक परेशानियां उभर कर आती हैं जो उनकी दिनचर्या को बुरी तरह से प्रभावित करती ।

योग प्राकृतिक चिकित्सा के उपचार

आमतौर स थाइरॉइड के रोगियों को डाक्टर तमाम उम्र दवा खाने की सलाह देते हैं। इन दवाओं के अपने पाश्र्व प्रभाव साइड इफेक्ट भी होते है। किन्तु योग प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा थायरॉइड का सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है।

  • शरीर में कफ का बढ़ना भी इस रोग का प्रमुख कारण है। अतः रोज प्रातः खाली पेट कुंजल. जलनेति की क्रिया बहुत लाभप्रद है।
  • अपनी दिनचर्या में योग को शामिल करें। इस रोग में भस्त्रिका, कपालभाति, उज्जायी, प्राणायाम काफी कारगर हैं ग्रीवाशक्ति विकासक़ अग्निसार क्रिया भी बहुत प्रभावकारी है। इनसे चयापचय गति बढ़ती है शारीरिक सुस्ती. आलस्य तथा थकावट को दूर करने में उपयोगी सिद्ध होता है।
  • चिंता, तनाव, भय, असुरक्षा, संवेदनशीलता तथा निराशा आदि जैसे कारण जो इस रोग के लिए प्रमुख उत्तरदायी हैं. को ध्यान. योगनिद्रा एवं शिथिलीकरण से स्थायी रूप से दूर किया जा सकता है। इनका प्रतिदिन आधे घंटे अभ्यास करें।
  • पेट और गले पर मिट्टी की पट्टी 30 मिनट के लिए रोज रखें । एनिमा लेकर पेट साफ रखें और 7  से 10 मिनट के लिए भापस्नान. गर्म कटिस्नान अथवा उष्ण पादस्नान लेकर पसीना निकालें। पेट और गले पर कम से कम 1 घंटे के लिए गीर्लीसूखी लपेट बांधे।

आहार विहार

  • मिर्र्चमसालेदार. तलीभुनी चीज़ मैदे की बनी चीजें. फास्ट फूड आइटमस का त्याग करें।
  • मद्यपान, धूम्रपान, गुटका, तम्बाखु, चाय, कॉफी, चॉकलेट आदि चीजों को छोड़कर ही इस रोग से स्थाई छुटकारा मिल सकता है ।
  • गेहुं, सिंघाड़ा तथा जौ की मिश्रित आटे की रोटी का सेवन करें ।
  • प्रोटीनयुक्त आहार जैसे अधिक दालें. मांस आदि का प्रयोग न करें मूंग़ मसूर की दाल. हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें।
  • हाइपोथायराइड के लिए आयोडोन युक्त आहार र्लें | पानी में उगने वाली चीजों में आयोडीन की प्रचुर मात्रा होती है। जैसे सिंसाडा. कमलककड़ी. कमलगट्टा. कुलफे का साग आदि का अधिक सेवन करें।
  • सभी फल ह्यकेला छोड्करहृ . हरी सब्जी तथा थोड़ा सा ड्राई फूट को अपने खाने मैं शामिल करें। अनाजों का सेवन भोजन की मात्रा में कम करें।
  • अंकुरित अनाज़ मट्ठा, सलाद रोजाना लें। दिन में अधिक बार कुछ न कुछ खाते रहने की आदत से बचें।
  • खाली वैठे रहने की आदत को छोड्कर काम में व्यस्त रहने की आदत बनायें।

इस रोग में तनाव, क्रोध नहीं बल्कि अपनी जीवन शैली को बदलने का प्रयास करें।